Indian Financial Sector में हाल ही में एक बड़ा खुलासा हुआ है, जिसने बैंकिंग वेल पर हलचल मचा दी है। HDFC के चेयरमैन रहे दीपक पारेख ने एक इंटरव्यू के दौरान खुलासा किया कि कभी ICICI Bank, देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंकों में से एक, ने HDFC को अपने नेटवर्क में शामिल करने के लिए अधिग्रहण की कोशिश की थी। यह खुलासा ऐसे समय में आया है जब HDFC और HDFC Bank का हाल ही में हुआ मर्जर पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है।
दीपक पारेख ने इस राज के पार्टिकल्स को उजागर करते हुए बताया कि यह घटना आज से लगभग दो दशक पहले की है। उस समय ICICI Bank के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने HDFC के अधिग्रहण को अपनी दिलचस्पी बनाया था। हालांकि, उस वक्त HDFC ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने का निर्णय किया।
हमें ICICI से ऑफर आया था। लेकिन हमने अपनी संस्कृति, अपने विज़न और अपनी शैली का अनुभव यह महसूस किया कि यह अलग है। इसलिए हमने इसे विनम्रतापूर्वक ठुकराया।”
HDFC और ICICI की अलग पहचान
HDFC का गठन वर्ष 1977 में हुआ था, और यह देश का पहला हाउसिंग फाइनेंस इंस्टीट्यूट था। ICICI Bank का गठन 1994 में हुआ और यह रिटेल बैंकिंग, कॉरपोरेट बैंकिंग और निवेश सेवाओं में डिगेजेंट फॉरवर्ड में।
HDFC ने दशकों तक एक स्वतंत्र, विश्वसनीय और सुदृढ़ ब्रांड के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बनाई। ICICI Bank ने भी टेक्नोलॉजी और डिजिटल बैंकिंग के क्षेत्र में खुद को आगे रखा। दोनों की संचालन शैली अलग थी, यही कारण है कि उस समय का प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया।
अब क्या बदला है:2023 में HDFC और HDFC Bank के बीच ऐतिहासिक मर्जर हुआ, जिसे भारत के कॉर्पोरेट इतिहास का सबसे बड़ा मर्जर बताया गया। इस मर्जर का आकार करीब ₹3.2 लाख करोड़ की डील था, जिसके बाद HDFC Bank देश का सबसे बड़ा प्राइवेट लेंडर बना गया।
इसके बाद में दीपक पारेख ने चेयरमैन के पद से रिटायरमेंट होने की घोषणा की और कई निजी बातें कीं, जिनमें ICICI Bank द्वारा HDFC खरीदने का प्रयास भी शामिल था।
इसके बाद से शेयर मार्केट में हलचल देखी गई है। एक्सपर्ट्स और निवेशकों ने यह खबर बैंकिंग सेक्टर के भविष्य के परिप्रेक्ष्य में देखी है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि उस समय ICICI और HDFC का विलय हो जाता, तो भारतीय बैंकिंग सेक्टर की तस्वीर आज बिल्कुल अलग होती।
क्या सीख मिलती है इस घटना से
इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि किसी भी संस्थान की सफलता केवल आर्थिक ताकत पर ही निर्भर नहीं करती, बल्कि उसकी संस्कृति, दीर्घकालिक सोच और नेतृत्व की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है।
दीपक पारेख की यह बात खुलासा करता है कि HDFC ने हमेशा विज़न और अपनी स्वतंत्र विचारधारा पर विश्वास रखा। जबकि ICICI Bank ने विस्तार की योजना अपने माध्यम से अधिग्रहण की थी, HDFC ने अपने मूल्यों पर कुर्बानी नहीं दी और आज वह भारत के सबसे भरोसेमंद ब्रांड्स में गिना जाता है।,
HDFC Bank और HDFC एक हो गई है, तो यह देखना काफी रोचक होगा कि यह गठबंधन आने वाले सालों में बैंकिंग सेक्टर पर कैसे प्रभाव डालता है।