Prada ने Kolhapuri GI टैग के उल्लंघन से किया इनकार, ₹500 करोड़ का केस चर्चा में

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भारत की पारंपरिक शिल्प और कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान देने में GI (Geographical Indication) टैग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हाल ही में फैशन वेस्टर्न जगत की जानी-मानी लग्ज़री ब्रांड Prada एक ऐसे ही विवाद में फंसी हुई है, जो भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर Kolhapuri चप्पलों से जुड़ा हुआ है। मामला ₹500 करोड़ के कानूनी दावे तक पहुँच गया है, जिसमें भारत के कुछ संगठनों ने Prada पर GI टैग के उल्लंघन का आरोप लगाया है।

Kolhapuri चप्पल और GI टैग?

Kolhapuri चप्पल महाराष्ट्र और कर्नाटक का पारंपरिक हस्तशिल्प से बनी चप्पलें हैं, जो पूरी तरह से हाथ से बनाई जाती हैं। ये चप्पल 2019 में GI टैग प्राप्त हुआ था, जो यह सुनिश्चित करता है कि Kolhapuri नाम का उपयोग केवल वही उत्पाद कर सकते हैं, जो उस विशिष्ट क्षेत्र में बनते हैं। GI टैग का लक्ष्य पारंपरिक और क्षेत्रीय उत्पादों की identification, quality, and cultural heritage को सुरक्षित बनाना है। यह टैग इन चप्पलों की बाज़ार में विश्वसनीयता और मूल्य दोनों बढ़ाता है।

विवाद की जड़ क्या है?

Prada ने हाल ही में अपने एक फुटवियर कलेक्शन में एक सैंडल पेश की, जिसे भारतीय ट्रेडमार्क अधिकारियों और कारीगरों ने Kolhapuri चप्पल से मिलता-जुलता कहा है। उनका आरोप है कि Prada ने यह डिज़ाइन बिना अनुमति और बिना क्रेडिट के इस्तेमाल किया है।

Prada इस मानिटरिंग अलायंस के अलावा संघीय GI अधिकार संघों और अन्य व्यापारिक संघों द्वारा आपत्ति जताई गई और ₹500 करोड़ का कानूनी राय दायर किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि यह न केवल बौद्धिक संपदा का उल्लंघन है ही नहीं बल्कि भारतीय शिल्पकारों के सम्मान और व्यवसाय पर भी प्रहार है।

Prada की सफाई: यह सिर्फ एक साधारण सैंडल है

Prada ने अपनी प्रतिक्रिया में यह कहा कि उन्होंने किसी भी GI टैग का उल्लंघन नहीं किया है। उनका कहना है, जिन सैंडलों की बात की जा रही है, वे कोल्हापुरी डिज़ाइन नहीं बल्कि आम चमड़े की सैंडल हैं। Prada का यह भी दावा है कि वे भारत के किसी क्षेत्रीय डिज़ाइन को कॉपी नहीं कर रहे, और उनका डिज़ाइन पूरी तरह से उनके अंदरूनी क्रिएटिव प्रॉसेस का हिस्सा है।

कानूनी नजरिया

यह मामला एक बार फिर GI (भौगोलिक संकेतक) कानून की व्याख्या को सुर्खियों में ले आया है। GI टैग का उल्लंघन तब माना जाता है जब कोई उत्पाद नाम, डिज़ाइन या शैली को अनुचित तरीके से अपनाता है, जिससे मूल उत्पाद की पहचान और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है।

भारत में GI टैग के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है, जिसमें भारी जुर्माना और मुआवजा भी शामिल हो सकता है। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड से जुड़ा हुआ है और इसका निर्णय भविष्य में अन्य GI टैग उत्पादों की सुरक्षा के लिए दिशा तय कर सकता है।

Kolhapuri चप्पलों से संबंधित कारीगर और शिल्पकारों ने इस विवाद पर गुस्सा जाहिर किया है। उनका कहना है हम पीढ़ियों की लगान कर इस कला को जीवित रखे हुए हैं। अगर कोई बड़ा ब्रांड इसे कॉपी करके मुनाफा कमाता है और हमें क्रेडिट तक नहीं देता, तो यह हमारी मेहनत और पहचान का अपमान है। उनका विश्वास है कि सरकार को GI टैग की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रक्षा करने के लिए और सफल कदम उठाने चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय फैशन में भारतीय शिल्प की अहमियत

Kolhapuri चप्पलें फुटवियर नहीं, भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं। दुनिया भर में हस्तशिल्प और एथनिक फैशन की मांग बढ़ रही है, और भारतीय डिज़ाइनों को अपनाने वाले कई इंटरनेशनल ब्रांड्स इस चलन का हिस्सा बन चुके हैं लेकिन जब यह अपनाना बिना अनुमति और क्रेडिट के होता है, तो यह कल्चरल अप्रोप्रिएशन (सांस्कृतिक अनुचित अधिग्रहण) बन जाता है, जो वैश्विक स्तर पर विवादों को जन्म देता है।

अदालत इस मामले में क्या फैसला करती है – कि Prada का GI टैग का उल्लंघन माना जाएगा, या उनका आरोप सही ठहराया जाएगा। इससे संबंधित कानूनी और नैतिक पहलू कई नए सवाल खड़े कर रहे हैं।भारत के लिए यह मौका है कि वह अपने पारंपरिक उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स से रक्षा करने के लिए कानूनी ढांचा और प्रचार रणनीति मजबूत करे।

Kolhapuri चप्पल और Prada का यह हलका विवाद महज़ एक डिज़ाइन की लड़ाई नहीं, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत बनाम वैश्विक व्यापारिक ताकत की कहानी भी है। अगर भारत को अपने GI टैग उत्पादों की पहचान को वैश्विक स्तर पर बनाये रखना है, तो ऐसे मामलों में कड़े कदम और सशक्त प्रतिनिधित्व ज़रूरी हैं।